वो दूसरी औरत Neelam Kulshreshtha द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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वो दूसरी औरत

वो दूसरी औरत

[नीलम कुलश्रेष्ठ ]

बरसों से कहूं या युगों से किसी ने उसकी सुध नहीं ली .वह आज तक गुमनामी के अँधेरे में हैं. .जन्म देने वाली माँ तो शब्दों ,कलाओं की कूचियों ,भाषणों के फूलहार पहनती रही ह बस उसे ही कोई यायाद क्यों नहीं करता ? उसके जन्मदात्री स्वरुप को किसी ने देखने की कोशिश नहीं की. .डॉक्टर ,नर्स या आया इनमें से कोई भी नहीं सभी तो पैसे की , नौकरी की ड्यूटी बजातें हैं .

जानते हो मुझे उस औरत का ख्याल कब आया ?जब तुम्हें सर्जरी से जन्म देने के बाद मुझे होश की लहरें धीरे धीरे थपथपा रहीं थीं तब मैंने अस्पताल के कमरें में अपने पलंग के पास हथेली पर मुंह टिकाये उसका चिंतातुर चेहरा देखा था .मेरा भाई भी ऐसा ही चेहरा लिए पास में ग्लूकोज़ ड्रिप लगी मेरी कलाई थामे बैठा था .ये उन दिनों की बात है जब ध्यान रखना पड़ता था कि कहीं ड्रिप वाली कलाई हिल ना जाये .

थोड़ी देर बाद भाई को पास के पलंग पर आराम करवाती वह सारी रात मेरे पास बैठी रही थी .तुम कैसे हो ?क्या कर रहे हो ?तुम्हरे जन्म देने के बाद जब आया तुम्हें निहलाकर साफ़ कर बाहर लाई थी तो सबसे पहले उसी ने तुम्हें गोद में लेकर अश्रुपूरित आँखों से ,थरथराते होठों से तुम्हारे माथे पर चुम्बन लिया था ,यह तुम्हारे जीवन का प्रथम चुम्बन उसी औरत का था ,उसी गुमनाम औरत का .तुम्हें अपने हाथ से बनाया झबला व नेपकिन पहनाने वाली यानि कि सबसे पहला वस्त्र पहनाने वाली वही थी .

उसी ने सबसे पहले तुम्हारे होंठों पर सबसे पहला आहार लगाया था ,दूध की बोतल की निपल का .मुझे तुम्हारी माँ को सुध ही कहाँ थी ? तुम आँखे बंद किये समझ भी नहीं पाए होगे कि क्या करू?तुम्हें तो मेरी कोख के अँधेरे की आदत थी , जहां तुम्हें बिना हिले डुले आहार अपनी नाल से मिल जाता था .उसी ने निपल दबाकर दूध तुम्हारे मूंह में पहुंचाया होगा .तुम्हारे मूंह को रोयेंदार तौलिया से पोंछकर तुम्हें कंधे से तुम्हारी ज़िंदगी की प्रथम डकार उसी ने दिलवाई होगी . फिर तुम्हें जी भरकर निहारकर अपनी आँखों से निहारा होगा लेकिन पेट भर जाने के बाद तुम्हें कहाँ सुध होगी कि तुम अपने जीवन के प्रथम आह़ार के लिए उन्हें शुक्रिया अदा करो .नींद के झोंकों से तुम्हारी रेशमी पल्कें मुंदकर बंद हो गई होंगीं तुम इसे सो गए होगे जैसे कोख की मांसपेशियों में गोल होते हुए सोते थे .

उस रात जब जब मुझे होश आया , मेरी बेचैन आँखें खुलीं। वह बेचैन हो मुझ पर झुक आती ,``श्वेता अब कैसी हो ?``

मैं पलकों को झपका कर उत्तर देने की कोशिश से पहले ही फिर बेहोशी में डूब जाती .सुबह जब पहली बार चेतना की लहर ने ठीक से मुझे जगाया तो देखा सामने पलंग पर तुम्हारा तीन वर्षीय बड़ा गदबदा भाई हरे फूलों के प्रिंट वाला क्रीम कलर का नाईट सूट पहने आलथी पालथी मारे हथेली पर थोड़ी टिकाये ,होंठ भींचकर अपनी आँखों से एकटक मुझे देखे जा रहा था .वे उसे ब्रेड खाने का अनुरोध कर रहीं थीं लेकिन वह `चक्क `की आवाज़ निकालकर मना कर देता था ..इससे पहले मैं तुम्हारे भाई से कुछ खाने के लिए कहती मैं बेहोशी के अन्धेरे में फिर गोता खा गई थी। सर्चलाईट की किरणों सी चेतना मुझसे आँख मिचौली कर रही थी .

मुझे याद है जब मुझे होश आया तब सूरज चढ़ आया था .मेरी पलकें खुली देखकर तुम्हारा भाई दौड़ आया था ,``मम्मी !आप जग गईं ?``

``हाँ ,तुम कुछ खा लो .``

वह डिब्बे में रक्खे सेंडविच पर टूट पडा था .

मैं आश्चर्य कर रही थी तुम्हारी जन्मदात्री तो मैं थी किन्तु तुम्हें जन्म देने के बाद मुझमे शक्ति कहाँ थी कि मैं तुम्हारी देखभाल कर सकूं .सारा काम यहाँ तक यदि आया नहीं आये तो तुम्हारी गन्दगी साफ़ करने तक का काम वहीं कर रहीं थीं

दसवें दिन अस्पताल से घर लौटकर मैं तो पलंग पर पस्त पड़ गई थी .इस नई दुनियां में तुम बेचैन थे और बार बार रो उठते थे .शायद तुम सोच रहे थे कि इससे तो कोख अच्छी थी वहाँ बस एक प्यारा सा दोस्त था ,काला नीम अंधेरा।

उस दिन कपडे धोने वाली नहीं आई थी .वो औरत ही डिटोल व् साबुन से दो बाल्टी कपडे आँगन में पीटने से जल्दी जल्दी पीटती धोने बैठ गई थी जिससे तुम्हें व् मुझे अस्पताल से साथ आये रोगाणु न लग जाएँ।शाम को मुझे ज़री की साडी में सजा दिया था . वह मेरे नाखूनों पर माहवर लगा रही थी , वह पैर के बीच में बिंदी लगाकर जाने को मुडी तो मैंने मनुहार की ,``मम्मी !आज तो एडी भी रंग दीजिये .``

``ओहो !तू तो इसे गंवारपन कहती है .` `` .मेरी एडियों को माहवर से स्नेह से रंगतीं ,सहलाती इस उँगलियों के कारण मेरे दिमाग के सारे तंतु शांत हो गए थे .काश !ये घर,उसका आँचल ,उसकी कोख बन जाये ,मैं हमेशा इसमें गोल हुए पड़ी रहूँ .,किसी भी उद्वेग से परे।

पडौस की अपरिचित लडकी को बुलाकर शगुन के सतिये रखवाए थे।तुम्हें काजल लगाने के साथ मरी आँखों में काजल लगा दिया था .अपनी उँगलियों को अपने बालों में पोंछती हंस दी थी ,``तुझे काजल से चिद है लेकिन आज तो शगुन करना पडेगा .``

उनके सांवरेथके चेहरे की देखकर मैं विचलित थी ,``बाबा अब आप सो जाइए .``

``आज सतिये रक्खे गएँ हैं ,पांच जच्चा तो गानी होंगी .``वे ज़मीन पर चटाई बिछाकर ढोलक लेकर बैठ गईं थीं ,जच्चा मेरी सीधी सादी रे -------नौ कनस्तर घी के पी गई , नो मन खा गई बूरा रे ---जच्चा मेरी खाना न जाने रे .``

ओह !मैं भूल गई अपने मूल प्रदेश से दूर पलने वाले तुम क्या जानो` जच्चा `क्या होता है /इसका मतलब है जन्म देने वाली स्त्री .बच्चे के जन्म पर गाये जाने वाले लोकगीत भी `जच्चा `कहलाते हैं उन्हें विश्वास था कि इन शगुनों को करने से तुम्हारा जीवन सुखों से भरपूर रहेगा .उस सवा महीने वह घर के किसी कोने में हो हर समय उसके प्राण मेरे कमरे ,मेरे पलंग ,पर सोये तुम पर ही मंडराते रहते थे .उपरी हवा [उनकी मान्यता थी ]के लिए मी बिस्तर के गद्दे के नीचे चाकू रहता था .कभी घर में बिल्ली नज़र आ जाये तो उसे चिल्लाकर निकाल कर ही दम लेती थी क्योंकि दूध की गंध से बिल्ली किसी कमज़ोर बच्चे को घसीट ले गई थी .उसने ऐसे किस्से सुन रक्खे थे .

ये मैंने माना मैंने उम्र भर तुम्हें पाला था .मैं तुम्हारे जीवन की प्रथम स्त्री थी लेकिन तुम्हारे जीवन के आधारशिला मास में वह दूसरी औरत तुम्हारी नानी थी ,ओरों के लिए वह दादी भी हो सकती है .अब तो कितने बरस बीत चुके हैं इस बात को .तुम अपनी सामर्थ से दुनियां को बहुत कुछ देने व् उससे बहुत कुछ लेने की सीमा पर कदम रख चुके हो .

जानते हो मैं ये सब तुम्हें क्यों लिख रहीं हूँ ?जीवन पर्यंत तुम याद रख सको उस औरत का प्रथम माथे पर लिया चुम्बन ,प्रथम आहार .प्रथम कपडे पहनने वाले हाथ और बाद की देख रेख पर तो एक माँ के स्तुतिगान पर पुस्तकें भरी हुईं हैं .अब वक्त आ गया है हम पहली व् दूसरी औरत के प्यार व् देख रेख का क़र्ज़ उतारने का ,उस तीसरी औरत को सहेजकर दुनियां की औरतों को इज्ज़त देने का .

तुम्हारे फाइनल एग्जाम अभी हुए नहीं हैं और तुम नौकरी के लिए सबसे पहले केम्पस इन्टर्व्यु में चुन लिए गए हो .परीक्षा के बाद अभी वायवा हुआ नहीं है और तुम्हें नौकरी ज्वाइन करनी है .पंद्रह दिनों बाद घर से दूर रहकर शनिवार को हकबकाए से तुम लौटते हो ,`` अरे ! जेल में बहुत रह लिया .``

सुबह दस बजे ब्रश करते हुए सब दोस्तों को खबर कर दी है , सब `युवा `फिल्म देखने इक्कठे हो रहे हैं .तुम आज़ादी का जश्न मनाकर लौटते हो .दूसरे दिन फाइनल वाइवा है .उसके बाद फिर जश्न होना ही है .

शाम की चाय पर तुम्हें सजे संवारे देखकर चौंक उठीं हूँ ,``अब कहाँ चल दिए ?` ``शाम को कोलोनी के फ्रेंड्स इक्कठे हो रहे हैं .``

तुम नौकरी के कारण पहली बार घर से बाहर गए हो तुमसे बात करने को तडपती मैं फट पड़तीं हूँ,``जब दोस्तों में ही रहना था तो घर क्यों आये ?``दोस्तों से समय नियत है तुम्हें जाना ही है .रात को लौटकर खाना खाते समय तुम अपनी बातों से मेरा वअपने डैडी का मन बहला रहे हो .सुबह छ;बजे तुम्हें निकलना है ,तुम रात को कंप्यूटर पर काम करते रहते हो .

दूसरे दिन छ; बजे के बाद सारा घर लटकी हुई गर्दन सा निढाल ,उदास है . सब कुछ होते हुए भी बिल्कुल सूनी हवेली सा भाँय भाँय कर है .घर के काम मैं जैसे तैसे ख़त्म करतीं हूँ . उचाट मन को बहलाने के लिए कंप्यूटर के सामने बैठ जातीं हूँ पर्दे पर आइकन्स के उभरते ही स्क्रीन पर एक भूरे बालों वाले दस ग्यारह माह के बच्चे का चेहरा उभर आता है ,तुम्हारी उस उम्र की शक्ल से मिलता हुआ .उसकी काली टी शर्ट पर लाल स्कार्फ़ बंधा हुआ है .वह अपने सुर्ख लाल होंठ मेरी तरफ बार बार चुम्बन लेता बढा रहा है .मैं भरी आँखों से अपना मेल चैक करतीं हूँ .पहला मेल तुम्हारा ही है .बोल्ड अक्षरों में लिखा है ;``मॉम एंड डैड !आई लव यू टू मच .``

वो तो ठीक है बेटा !तुम्हारे जैसे स्क्रीन पर दिखाई देते नन्हे शरीर को बाहों में कसे रखना कहाँ तक संभव हो पाता .तुम बड़ते गए ,बाँहों से फिसलते गए .अब इतने बड़े की तुम्हें दुनियाँ को सौपना पड़ा .ये दर्द मैंने भी तो कभी उस औरत को दिया था ,तब मैं भी कहाँ समझ पाई थी उसकी इस पीर को .मेरी व उसकी इस दर्द की तड़प भरी तकलीफ़ को तुम जब समझोगे जब तुम्हारा अपना --------------.

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